हर साल पौष मास के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को भैरव जयंती मनाने की परंपरा है. नववर्ष 2025 में यह पर्व 5 जनवरी को मनाया जाएगा. इस दिन देशभर के सभी भैरव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है. भैरवनाथ के एक प्राचीन मंदिर दिल्ली में भी स्थित है, जहां दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. यहां भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए शराब भी चढ़ाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं पांडव ने की थी. आइए आज इसी प्राचन मंदिर के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.
भैरव मंदिर की स्थापना और मान्यता
दिल्ली के नेहरू पार्क चाणक्यपुरी में स्थित बटुक भैरव मंदिर की स्थापना पांच पांडवों में से एक भीमसेन ने की थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध के दौरान भीमसेन काशी से भैरव बाबा को सुरक्षा और विजय की कामना के लिए दिल्ली लेकर आए थे. भीम बाबा को यह वचन लेकर चले थे कि वो उन्हें रास्ते में कंधे से नहीं उतरेंगे.
लेकिन दिल्ली आते-आते बाबा ने भीम को भ्रमित कर दिया और उनका वचन टूट गया. भीम ने जब दोबारा उठने का प्रयास किया तो वो उठ नहीं पाए. तब बाबा भैरव ने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए कुएं की मुंडेर पर विराजने का निश्चय किया. भीमसेन के प्रार्थना करने पर भी बाबा ने अपनी स्थिति नहीं बदली और तभी से वो यहीं स्थायी रूप से विराजमान हैं.
भैरव बाबा को संकटमोचक और दसों दिशाओं के रक्षक माना जाता है. भैरव जयंती के दिन भक्त बड़ी संख्या में मंदिरों में आते हैं और विशेष अनुष्ठान करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन बाबा भैरव की पूजा करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सुख-शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह पर्व दिल्ली में विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है.
मान्यताओं के अनुसार, दिल्ली स्थित बटुक भैरो का यह मंदिर हजारों साल पुराना है. हालांकि इसकी बनावट बहुत पुरानी नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य होता रहा है. इस मंदिर में भैरोनाथ की बड़ी-बड़ी आंखें नजर आती हैं. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां बाबा भैरो नाथ को प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है.
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